9पस क्या हुआ; क्या हम कुछ फ़ज़ीलत रखते हैं? बिल्कुल नहीं क्यूँकि हम यहूदियों और यूनानियों दोनों पर पहले ही ये इल्ज़ाम लगा चुके हैं कि वो सब के सब गुनाह के मातहत हैं।
10चुनाँचे लिखा है “एक भी रास्तबाज़ नहीं।
11कोई समझदार नहीं कोई ख़ुदा का तालिब नहीं।
12सब गुमराह हैं सब के सब निकम्मे बन गए; कोई भलाई करनेवाला नहीं एक भी नहीं।
13उनका गला खुली हुई क़ब्र है उन्होंने अपनी ज़बान से धोखा दिया उन के होंटों में साँपों का ज़हर है।
14उन का मुँह ला'नत और कड़वाहट से भरा है।
15उन के क़दम ख़ून बहाने के लिए तेज़ी से बढ़ने वाले हैं।
16उनकी राहों में तबाही और बदहाली है।
17और वह सलामती की राह से वाक़िफ़ न हुए।
18उन की आँखों में ख़ुदा का ख़ौफ़ नहीं।”
19अब हम जानते हैं कि शरी'अत जो कुछ कहती है उनसे कहती है जो शरी'अत के मातहत हैं ताकि हर एक का मुँह बन्द हो जाए और सारी दुनिया ख़ुदा के नज़दीक सज़ा के लायक़ ठहरे।