9तो फिर क्या हुआ? क्या हम उनसे अच्छे हैं? कभी नहीं; क्योंकि हम यहूदियों और यूनानियों दोनों पर यह दोष लगा चुके हैं कि वे सब के सब पाप के वश में हैं।
10जैसा लिखा है: “कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं। (सभो. 7:20)
11कोई समझदार नहीं; कोई परमेश्वर को खोजनेवाला नहीं।
12सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गए; कोई भलाई करनेवाला नहीं, एक भी नहीं। (भज. 14:3, भज. 53:1)
13उनका गला खुली हुई कब्र है: उन्होंने अपनी जीभों से छल किया है: उनके होंठों में साँपों का विष है। (भज. 5:9, भज. 140:3)
14और उनका मुँह श्राप और कड़वाहट से भरा है। (भज. 10:7)
15उनके पाँव लहू बहाने को फुर्तीले हैं।
16उनके मार्गों में नाश और क्लेश है।
17उन्होंने कुशल का मार्ग नहीं जाना। (यशा. 59:8)
18उनकी आँखों के सामने परमेश्वर का भय नहीं।” (भज. 36:1)
19हम जानते हैं, कि व्यवस्था जो कुछ कहती है उन्हीं से कहती है, जो व्यवस्था के अधीन हैं इसलिए कि हर एक मुँह बन्द किया जाए, और सारा संसार परमेश्वर के दण्ड के योग्य ठहरे।