17मेरा बाप मुझे इस लिए मुहब्बत करता है कि मैं अपनी जान देता हूँ ताकि उसे फिर ले लूँ।
18कोई मेरी जान मुझ से छीन नहीं सकता बल्कि मैं उसे अपनी मर्ज़ी से दे देता हूँ। मुझे उसे देने का इख़्तियार है और उसे वापस लेने का भी। यह हुक्म मुझे अपने बाप की तरफ़ से मिला है।”
19इन बातों पर यहूदियों में दुबारा फ़ूट पड़ गई।
20बहुतों ने कहा, “यह बदरूह के क़ब्ज़े में है, यह दीवाना है। इस की क्यूँ सुनें!”
21लेकिन औरों ने कहा, “यह ऐसी बातें नहीं हैं जो इंसान बदरूह के क़ब्ज़े में हो। क्या बदरूह अँधों की आँखें सही कर सकती हैं?”