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पवित्र बाइबिल - मरकुस - मरकुस 6

मरकुस 6:30-55

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30प्रेरितों ने यीशु के पास इकट्ठे होकर, जो कुछ उन्होंने किया, और सिखाया था, सब उसको बता दिया।
31उसने उनसे कहा, “तुम आप अलग किसी एकान्त स्थान में आकर थोड़ा विश्राम करो।” क्योंकि बहुत लोग आते जाते थे, और उन्हें खाने का अवसर भी नहीं मिलता था।
32इसलिए वे नाव पर चढ़कर, सुनसान जगह में अलग चले गए।
33और बहुतों ने उन्हें जाते देखकर पहचान लिया, और सब नगरों से इकट्ठे होकर वहाँ पैदल दौड़े और उनसे पहले जा पहुँचे।
34उसने उतर कर बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिनका कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा। (2 इति. 18:16, 1 राजा. 22:17)
35जब दिन बहुत ढल गया, तो उसके चेले उसके पास आकर कहने लगे, “यह सुनसान जगह है, और दिन बहुत ढल गया है।
36उन्हें विदा कर, कि चारों ओर के गाँवों और बस्तियों में जाकर, अपने लिये कुछ खाने को मोल लें।”
37उसने उन्हें उत्तर दिया, “तुम ही उन्हें खाने को दो।” उन्होंने उससे कहा, “क्या हम दो सौ दीनार की रोटियाँ मोल लें, और उन्हें खिलाएँ?”
38उसने उनसे कहा, “जाकर देखो तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने मालूम करके कहा, “पाँच रोटी और दो मछली भी।”
39तब उसने उन्हें आज्ञा दी, कि सब को हरी घास पर समूह में बैठा दो।
40वे सौ-सौ और पचास-पचास करके समूह में बैठ गए।
41और उसने उन पाँच रोटियों को और दो मछलियों को लिया, और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और रोटियाँ तोड़-तोड़ कर चेलों को देता गया, कि वे लोगों को परोसें, और वे दो मछलियाँ भी उन सब में बाँट दीं।
42और सब खाकर तृप्त हो गए,
43और उन्होंने टुकड़ों से बारह टोकरियाँ भर कर उठाई, और कुछ मछलियों से भी।
44जिन्होंने रोटियाँ खाई, वे पाँच हजार पुरुष थे।
45तब उसने तुरन्त अपने चेलों को विवश किया कि वे नाव पर चढ़कर उससे पहले उस पार बैतसैदा को चले जाएँ, जब तक कि वह लोगों को विदा करे।
46और उन्हें विदा करके पहाड़ पर प्रार्थना करने को गया।
47और जब सांझ हुई, तो नाव झील के बीच में थी, और वह अकेला भूमि पर था।
48और जब उसने देखा, कि वे खेते-खेते घबरा गए हैं, क्योंकि हवा उनके विरुद्ध थी, तो रात के चौथे पहर के निकट वह झील पर चलते हुए उनके पास आया; और उनसे आगे निकल जाना चाहता था।
49परन्तु उन्होंने उसे झील पर चलते देखकर समझा, कि भूत है, और चिल्ला उठे,
50क्योंकि सब उसे देखकर घबरा गए थे। पर उसने तुरन्त उनसे बातें की और कहा, “धैर्य रखो : मैं हूँ; डरो मत।”
51तब वह उनके पास नाव पर आया, और हवा थम गई: वे बहुत ही आश्चर्य करने लगे।
52क्योंकि वे उन रोटियों के विषय में न समझे थे परन्तु उनके मन कठोर हो गए थे।
53और वे पार उतरकर गन्नेसरत में पहुँचे, और नाव घाट पर लगाई।
54और जब वे नाव पर से उतरे, तो लोग तुरन्त उसको पहचान कर,
55आस-पास के सारे देश में दौड़े, और बीमारों को खाटों पर डालकर, जहाँ-जहाँ समाचार पाया कि वह है, वहाँ-वहाँ लिए फिरे।

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