2“ख़ुदावन्द की तरह कोई पाक नहीं क्यूँकि तेरे सिवा और कोई है ही नहीं और न कोई चटटान है जो हमारे ख़ुदा की तरह हो
3इस क़दर ग़ुरूर से और बातें न करो और बड़ा बोल तुम्हारे मुहँ से न निकले; क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा — ए — 'अलीम है, और 'आमाल का तोलने वाला है।
4ताक़तवरों की कमाने टूट गईं और जो लड़खड़ाते थे वह ताक़त से कमर बस्ता हुए।
5वह जो आसूदा थे रोटी की ख़ातिर मज़दूर बनें और जो भूके थे ऐसे न रहे, बल्कि जो बाँझ थी उस के साथ हुए, और जिसके पास बहुत बच्चे हैं वह घुलती जाती है।
6ख़ुदावन्द मारता है और जिलाता है; वही क़ब्र मैं उतारता और उससे निकालता है।
7ख़ुदावन्द ग़रीब कर देता और दौलतमंद बनाता है, वही पस्त करता और बुलंद भी करता है।
8वह ग़रीब को ख़ाक पर से उठाता, और कंगाल को घूरे में से निकाल खड़ा करता है ताकि इनको शहज़ादों के साथ बिठाए, और जलाल के तख़्त का वारिस बनाए; क्यूँकि ज़मीन के सुतून ख़ुदावन्द के हैं उसने दुनिया को उन ही पर क़ाईम किया है।
9वह अपने मुक़द्दसों के पाँव को संभाले रहेगा, लेकिन शरीर अँधेरे मैं ख़ामोश किए जायेंगे क्यूँकि ताक़त ही से कोई फ़तह नहीं पाएगा।
10जो ख़ुदावन्द से झगड़ते हैं वह टुकड़े टुकड़े कर दिए जाएँगे; वह उन के ख़िलाफ़ आस्मान में गरजेगा ख़ुदावन्द ज़मीन के किनारों का इंसाफ करेगा, वह अपने बादशाह को ताक़त बख़्शेगा, और अपने मम्सूह के सींग को बुलंद करेगा।”
11तब इल्क़ाना रामा को अपने घर चला गया; और एली काहिन के सामने वह लड़का ख़ुदावन्द की ख़िदमत करने लगा।
12और एली के बेटे बहुत शरीर थे; उन्होंने ख़ुदावन्द को न पहचाना।
13और काहिनों का दस्तूर लोगों के साथ यह था, कि जब कोई शख़्स क़ुर्बानी करता था तो काहिन का नोंकर गोश्त उबालने के वक़त एक सहशाखा काँटा अपने हाथ मैं लिए हुए आता था;
14और उसको कढ़ाह या दिग्चे या हांडे या हांड़ी में डालता और जितना गोश्त उस काँटे में लग जाता उसे काहिन अपने आप लेता था। यूँ ही वह शीलोह में सब इस्राईलियों से किया करते थे जो वहाँ आते थे
15बल्कि चर्बी जलाने से पहले काहिन का नोकर आ मौजूद होता, और उस शख़्स से जो क़ुर्बानी पेश करता यह कहने लगता था, “काहिन के लिए कबाब के वास्ते गोश्त दे, क्यूँकि वह तुझ से उबला हुआ गोश्त नहीं बल्कि कच्चा लेगा।”
16और अगर वह शख़्स यह कहता कि अभी वह चर्बी को ज़रूर जलायेंगे तब जितना तेरा जी चाहे ले लेना “तो वह उसे जवाब देता नहीं तू मुझे अभी दे नही तो मैं छीन कर ले जाऊँगा।”
17इसलिए उन जवानों का गुनाह ख़ुदावन्द के सामने बहुत बड़ा था क्यूँकि लोग ख़ुदावन्द की क़ुर्बानी से नफ़रत करने लगे थे।
18लेकिन समुएल जो लड़का था, कतान का अफ़ूद पहने हुए ख़ुदावन्द के सामने ख़िदमत करता था।
19और उस की माँ उस के लिए एक छोटा सा जुब्बा बनाकर साल ब साल लाती जब वह अपने शौहर के साथ सालाना क़ुर्बानी पेश करने आती थी।
20और एली ने इल्क़ाना और उस की बीवी को दुआ दी और कहा, “ख़ुदावन्द तुझको इस 'औरत से उस क़र्ज़ के बदले में जो ख़ुदावन्द को दिया गया नसल दे।” फिर वह अपने घर गये।
21और ख़ुदावन्द ने हन्ना पर नज़र की और वह हामिला हुई, और उसके तीन बेटे और दो बेटियाँ हुईं, और वह लड़का समुएल ख़ुदावन्द के सामने बढ़ता गया।
22एली बहुत बुड्ढा हो गया था, और उसने सब कुछ सुना कि उसके बेटे सारे इस्राईल से क्या किया करते हैं और उन 'औरतों से जो ख़ेमा — ए — इजितमा'अ के दरवाज़े पर ख़िदमत करती थी हम आग़ोशी करते हैं।
23और उस ने उन से कहा, तुम ऐसा क्यूँ करते हो? क्यूँकि मैं तुम्हारी बदज़ातियाँ पूरी क़ौम से सुनता हूँ?
24नहीं मेरे बेटों ये अच्छी बात नहीं जो मैं सुनता हूँ; तुम ख़ुदावन्द के लोगों से नाफ़रमानी कराते हो।
25अगर एक आदमी दूसरे का गुनाह करे तो ख़ुदा उसका इंसाफ करेगा लेकिन अगर आदमी ख़ुदावन्द का गुनाह करे तो उस की शफ़ा'अत क़ौन करेगा? बावजूद इसके उन्होंने अपने बाप का कहना न माना; क्यूँकि ख़ुदावन्द उनको मार डालना चाहता था।
26और वह लड़का समुएल बढ़ता गया और ख़ुदावन्द और इंसान दोनों का मक़बूल था।
27तब एक नबी एली के पास आया और उससे कहने लगा, ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है क्या मैं तेरे आबाई ख़ानदान पर जब वह मिस्र में फ़िर'औन के ख़ानदान की ग़ुलामी में था ज़ाहिर नहीं हुआ?