16और में उसे जता दूँगा कि उसे मेरे नाम के ख़ातिर किस क़दर दुःख उठाना पड़ेगा”
17पस हननियाह जाकर उस घर में दाख़िल हुआ और अपने हाथ उस पर रखकर कहा, “ऐ भाई शाऊल उस ख़ुदावन्द या'नी ईसा जो तुझ पर उस राह में जिस से तू आया ज़ाहिर हुआ था, उसने मुझे भेजा है, कि तू बीनाई पाए, और रूहे पाक से भर जाए।”
18और फ़ौरन उसकी आँखों से छिल्के से गिरे और वो बीना हो गया, और उठ कर बपतिस्मा लिया।
19फिर कुछ खाकर ताक़त पाई, और वो कई दिन उन शागिर्दों के साथ रहा, जो दमिश्क़ में थे।
20और फ़ौरन इबादतख़ानों में ईसा का ऐलान करने लगा, कि वो ख़ुदा का बेटा है।
21और सब सुनने वाले हैरान होकर कहने लगे कि “क्या ये वो शख़्स नहीं है, जो येरूशलेम में इस नाम के लेने वालों को तबाह करता था, और यहाँ भी इस लिए आया था, कि उनको बाँध कर सरदार काहिनों के पास ले जाए?”
22लेकिन साऊल को और भी ताक़त हासिल होती गई, और वो इस बात को साबित करके कि मसीह यही है दमिश्क़ के रहने वाले यहूदियों को हैरत दिलाता रहा।
23और जब बहुत दिन गुज़र गए, तो यहूदियों ने उसे मार डालने का मशवरा किया।
24मगर उनकी साज़िश साऊल को मालूम हो गई, वो तो उसे मार डालने के लिए रात दिन दरवाज़ों पर लगे रहे।