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इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019 - लूका - लूका 2

लूका 2:32-46

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32ताकि ग़ैर क़ौमों को रौशनी देने वाला नूर और तेरी उम्मत इस्राईल का जलाल बने।”
33और उसका बाप और उसकी माँ इन बातों पर जो उसके हक़ में कही जाती थीं, ता'ज्जुब करते थे।
34और शमौन ने उनके लिए दु'आ — ए — ख़ैर की और उसकी माँ मरियम से कहा, “देख, ये इस्राईल में बहुतों के गिरने और उठने के लिए मुक़र्रर हुआ है, जिसकी मुख़ालिफ़त की जाएगी।
35बल्कि तेरी जान भी तलवार से छिद जाएगी, ताकि बहुत लोगों के दिली ख़याल खुल जाएँ।”
36और आशर के क़बीले में से हन्ना नाम फ़नूएल की बेटी एक नबीया थी — वो बहुत 'बूढ़ी थी — और उसने अपने कूँवारेपन के बाद सात बरस एक शौहर के साथ गुज़ारे थे।
37वो चौरासी बरस से बेवा थी, और हैकल से जुदा न होती थी बल्कि रात दिन रोज़ों और दु'आओं के साथ इबादत किया करती थी।
38और वो उसी घड़ी वहाँ आकर ख़ुदा का शुक्र करने लगी और उन सब से जो येरूशलेम के छुटकारे के मुन्तज़िर थे उसके बारे में बातें करने लगी।
39और जब वो ख़ुदावन्द की शरी'अत के मुवाफ़िक़ सब कुछ कर चुके तो गलील में अपने शहर नासरत को लौट गए।
40और वो लड़का बढ़ता और ताक़त पाता गया और हिक्मत से मा'मूर होता गया और ख़ुदा का फ़ज़ल उस पर था।
41उसके माँ — बाप हर बरस 'ईद — ए — फ़सह पर येरूशलेम को जाया करते थे।
42और जब वो बारह बरस का हुआ तो वो 'ईद के दस्तूर के मुवाफ़िक़ येरूशलेम को गए।
43जब वो उन दिनों को पूरा करके लौटे तो वो लड़का ईसा येरूशलेम में रह गया — और उसके माँ — बाप को ख़बर न हुई।
44मगर ये समझ कर कि वो क़ाफ़िले में है, एक मंज़िल निकल गए — और उसके रिश्तेदारों और उसके जान पहचानों में ढूँडने लगे।
45जब न मिला तो उसे ढूँडते हुए येरूशलेम तक वापस गए।
46और तीन रोज़ के बाद ऐसा हुआ कि उन्होंने उसे हैकल में उस्तादों के बीच में बैठा उनकी सुनते और उनसे सवाल करते हुए पाया।

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