24“मगर अफ़सोस तुम पर जो दौलतमन्द हो, क्यूँकि तुम अपनी तसल्ली पा चुके।
25“अफ़सोस तुम पर जो अब सेर हो, क्यूँकि भूखे होगे। “अफ़सोस तुम पर जो अब हँसते हो, क्यूँकि मातम करोगे और रोओगे।
26“अफ़सोस तुम पर जब सब लोग तुम्हें अच्छा कहें, क्यूँकि उनके बाप — दादा झूठे नबियों के साथ भी ऐसा ही किया करते थे।”
27“लेकिन मैं सुनने वालों से कहता हूँ कि अपने दुश्मनों से मुहब्बत रख्खो, जो तुम से 'दुश्मनी रख्खें उसके साथ नेकी करो।
28जो तुम पर ला'नत करें उनके लिए बर्क़त चाहो, जो तुमसे नफ़रत करें उनके लिए दुआ करो।
29जो तेरे एक गाल पर तमाचा मारे दूसरा भी उसकी तरफ़ फेर दे, और जो तेरा चोग़ा ले उसको कुरता लेने से भी मनह' न कर।