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इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019 - यूह - यूह 17

यूह 17:2-19

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2क्यूँकि तू ने उसे तमाम इंसान ों पर इख़्तियार दिया है ताकि वह उन सब को हमेशा की ज़िन्दगी दे जो तू ने उसे दिया हैं।
3और हमेशा की ज़िन्दगी यह है कि वह तुझे जान लें जो वाहिद और सच्चा ख़ुदा है और ईसा मसीह को भी जान लें जिसे तू ने भेजा है।
4मैं ने तुझे ज़मीन पर जलाल दिया और उस काम को पूरा किया जिस की ज़िम्मेदारी तू ने मुझे दी थी।
5और अब मुझे अपने हुज़ूर जलाल दे, ऐ बाप, वही जलाल जो मैं दुनियाँ की पैदाइश से पहले तेरे साथ रखता था।”
6“मैं ने तेरा नाम उन लोगों पर ज़ाहिर किया जिन्हें तू ने दुनियाँ से अलग करके मुझे दिया है। वह तेरे ही थे। तू ने उन्हें मुझे दिया और उन्हों ने तेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारी है।
7अब उन्होंने जान लिया है कि जो कुछ भी तू ने मुझे दिया है वह तेरी तरफ़ से है।
8क्यूँकि जो बातें तू ने मुझे दीं मैं ने उन्हें दी हैं। नतीजे में उन्हों ने यह बातें क़बूल करके हक़ीक़ी तौर पर जान लिया कि मैं तुझ में से निकल कर आया हूँ। साथ साथ वह ईमान भी लाए कि तू ने मुझे भेजा है।
9मैं उन के लिए दुआ करता हूँ, दुनियाँ के लिए नहीं बल्कि उन के लिए जिन्हें तू ने मुझे दिया है, क्यूँकि वह तेरे ही हैं।
10जो भी मेरा है वह तेरा है और जो तेरा है वह मेरा है। चुनाँचे मुझे उन में जलाल मिला है।
11अब से मैं दुनियाँ में नहीं हूँगा। लेकिन यह दुनियाँ में रह गए हैं जबकि मैं तेरे पास आ रहा हूँ। क़ुद्दूस बाप, अपने नाम में उन्हें मह्फ़ूज़ रख, उस नाम में जो तू ने मुझे दिया है, ताकि वह एक हों जैसे हम एक हैं।
12जितनी देर मैं उन के साथ रहा मैं ने उन्हें तेरे नाम में मह्फ़ूज़ रखा, उसी नाम में जो तू ने मुझे दिया था। मैं ने यूँ उन की निगहबानी की कि उन में से एक भी हलाक नहीं हुआ सिवाए हलाकत के फ़र्ज़न्द के। यूँ कलाम की पेशीनगोई पूरी हुई।
13अब तो मैं तेरे पास आ रहा हूँ। लेकिन मैं दुनियाँ में होते हुए यह बयान कर रहा हूँ ताकि उन के दिल मेरी ख़ुशी से भर कर छलक उठें।
14मैं ने उन्हें तेरा कलाम दिया है और दुनियाँ ने उन से दुश्मनी रखी, क्यूँकि यह दुनियाँ के नहीं हैं, जिस तरह मैं भी दुनियाँ का नहीं हूँ।
15मेरी दुआ यह नहीं है कि तू उन्हें दुनियाँ से उठा ले बल्कि यह कि उन्हें इब्लीस से मह्फ़ूज़ रखे।
16वह दुनियाँ के नहीं हैं जिस तरह मैं भी दुनियाँ का नहीं हूँ।
17उन्हें सच्चाई के वसीले से मख़्सूस — ओ — मुक़द्दस कर। तेरा कलाम ही सच्चाई है।
18जिस तरह तू ने मुझे दुनियाँ में भेजा है उसी तरह मैं ने भी उन्हें दुनियाँ में भेजा है।
19उन की ख़ातिर मैं अपने आप को मख़्सूस करता हूँ, ताकि उन्हें भी सच्चाई के वसीले से मख़्सूस — ओ — मुक़द्दस किया जाए।”

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