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इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019 - दानि

दानि 4

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1नबूकदनज़र बादशाह की तरफ़ से तमाम लोगों, उम्मतों और अहल — ए — ज़ुबान के लिए जो तमाम इस ज़मीन पर रहते हैं: तुम्हारी सलामती होती रहे।
2मैने मुनासिब जाना कि उन निशानों और 'अजायब को ज़ाहिर करूँ जो ख़ुदा — त'आला ने मुझ पर ज़ाहिर किए हैं।
3उसके निशान कैसे 'अज़ीम, और उसके 'अजायब कैसे पसंदीदा हैं! उसकी ममलुकत हमेशा की ममलुकत है, और उसकी सल्तनत नसल — दर — नसल।
4मैं, नबूकदनज़र, अपने घर में मुतम'इन और अपने महल में कामयाब था।
5मैने एक ख़्वाब देखा, जिससे मैं परेशान हो गया और उन ख़्यालात से जो मैने पलंग पर किए और उन ख़्यालों से जो मेरे दिमाग़ में आए, मुझे परेशानी हुई।
6इसलिए मैने फ़रमान जारी किया कि बाबुल के तमाम हकीम मेरे सामने हाज़िर किए जाएँ, ताकि मुझसे उस ख़्वाब की ता'बीर बयान करें।
7चुनाँचे जादूगर और नजूमी और कसदी और फ़ालगीर हाज़िर हुए, और मैने उनसे अपने ख़्वाब का बयान किया, पर उन्होंने उसकी ता'बीर मुझ से बयान न की।
8आख़िरकार दानीएल मेरे सामने आया, जिसका नाम बेल्तशज़र है, जो मेरे मा'बूद का भी नाम है, उसमें मुक़द्दस इलाहों की रूह है; इसलिए मैने उसके आमने — सामने ख़्वाब का बयान किया और कहा:
9ऐ बेल्तशज़र, जादूगरों के सरदार, चूँकि मैं जानता हूँ कि मुक़द्दस इलाहों की रूह तुझमे है, और कि कोई राज़ की बात तेरे लिए मुश्किल नहीं; इसलिए जो ख़्वाब मैने देखा उसकी कैफ़ियत और ता'बीर बयान कर।
10पलंग पर मेरे दिमाग़ की रोया ये थी: मैने निगाह की और क्या देखता हूँ कि ज़मीन के तह में एक निहायत ऊँचा दरख़्त है।
11वह दरख़्त बढ़ा और मज़बूत हुआ और उसकी चोटी आसमान तक पहुँची, और वह ज़मीन की इन्तिहा तक दिखाई देने लगा।
12उसके पत्ते खु़शनुमा थे और मेवा फ़िरावान था, और उसमें सबके लिए ख़ुराक थी; मैदान के जानवर उसके साये में और हवा के परिन्दे उसकी शाखों पर बसेरा करते थे, और तमाम बशर ने उस से परवरिश पाई।
13“मैने अपने पलंग पर अपनी दिमाग़ी रोया पर निगाह की, और क्या देखता हूँ कि एक निगहबान, हाँ एक फ़रिश्ता आसमान से उतरा।
14उसने बलन्द आवाज़ से पुकार कर यूँ कहा कि 'दरख़्त को काटो, उसकी शाखें तराशो, और उसके पत्ते झाड़ो, और उसका फल बिखेर दो; जानवर उसके नीचे से चले जाएँ और परिन्दे उसकी शाखों पर से उड़ जाएँ।
15लेकिन उसकी जड़ों का हिस्सा ज़मीन में बाक़ी रहने दो, हाँ, लोहे और ताँम्बे के बन्धन से बन्धा हुआ मैदान की हरी घास में रहने दो, और वह आसमान की शबनम से तर हो, और उसका हिस्सा ज़मीन की घास में हैवानों के साथ हो।
16उसका दिल इंसान का दिल न रहे, बल्कि उसको हैवान का दिल दिया जाए; और उस पर सात दौर गुज़र जाएँ।
17यह हुक्म निगहबानों के फ़ैसले से है, और यह हुक्म फ़रिश्तों के कहने के मुताबिक़ है, ताकि सब जानदार पहचान लें कि हक़ त'आला आदमियों की ममलुकत में हुक्मरानी करता है और जिसको चाहता है उसे देता है, बल्कि आदमियों में से अदना आदमी को उस पर क़ायम करता है।
18मैं नबूकदनज़र बादशाह ने यह ख़्वाब देखा है। ऐ बेल्तशज़र, तू इसकी ता'बीर बयान कर, क्यूँकि मेरी ममलुकत के तमाम हकीम मुझसे उसकी ता'बीर बयान नहीं कर सकते, लेकिन तू कर सकता है; क्यूँकि मुक़द्दस इलाहों की रूह तुझमें मौजूद है।”

19तब दानीएल जिसका नाम बेल्तशज़र है, एक वक़्त तक ख़ामोश रहा, और अपने ख़्यालात में परेशान हुआ। बादशाह ने उससे कहा, ऐ बेल्तशज़र, ख़्वाब और उसकी ता'बीर से तू परेशान न हो। बेल्तशज़र ने जवाब दिया, ऐ मेरे ख़ुदावन्द, ये ख़्वाब तुझसे कीना रखने वालों के लिए और उसकी ता'बीर तेरे दुश्मनों के लिए हो!
20वह दरख़्त जो तूने देखा कि बढ़ा और मज़बूत हुआ, जिसकी चोटी आसमान तक पहुँची और ज़मीन की इन्तिहा तक दिखाई देता था;
21जिसके पत्ते ख़ुशनुमा थे और मेवा फ़रावान था, जिसमें सबके लिए ख़ुराक थी। जिसके साये में मैदान के जानवर और शाखों पर हवा के परिन्दे बसेरा करते थे।
22ऐ बादशाह, वह तू ही है जो बढ़ा और मज़बूत हुआ, क्यूँकि तेरी बुज़ुर्गी बढ़ी और आसमान तक पहुँची और तेरी सल्तनत ज़मीन की इन्तिहा तक।
23और जो बादशाह ने देखा कि एक निगहबान, यहाँ, एक फ़रिश्ता आसमान से उतरा और कहने लगा, 'दरख़्त को काट डालों और उसे बर्बाद करो, लेकिन उसकी जड़ों का हिस्सा ज़मीन में बाक़ी रहने दो; बल्कि उसे लोहे और ताँम्बे के बन्धन से बन्धा हुआ, मैदान की हरी घास में रहने दो कि वह आसमान की शबनम से तर हो, और जब तक उस पर सात दौर न गुज़र जाएँ उसका हिस्सा ज़मीन के हैवानों के साथ हो।
24ऐ बादशाह, इसकी ता'बीर और हक़ — त'आला का वह हुक्म, जो बदशाह मेरे ख़ुदावन्द के हक़ में हुआ है यही है,
25कि तुझे आदमियों में से हाँक कर निकाल देंगे, और तू मैदान के हैवानों के साथ रहेगा, और तू बैल की तरह घास खाएगा और आसमान की शबनम से तर होगा, और तुझ पर सात दौर गुज़र जाएँगे, तब तुझको मा'लूम होगा कि हक़ त'आला इंसान की ममलुकत में हुक्मरानी करता है और उसे जिसको चाहता है देता है।
26और यह जो उन्होंने हुक्म किया कि दरख़्त की जड़ों के हिस्से को बाक़ी रहने दो, उसका मतलब ये है कि जब तू मा'लूम कर चुकेगा कि बादशाही का इख़्तियार आसमान की तरफ़ से है, तो तू अपनी सल्तनत पर फिर क़ायम हो जाएगा।
27इसलिए ऐ बादशाह, तेरे सामने मेरी सलाह क़ुबूल हो और तू अपनी ख़ताओं को सदाक़त से और अपनी बदकिरदारी को मिस्कीनों पर रहम करने से दूर कर, मुम्किन है इससे तेरा इत्मिनान ज़्यादा हो।
28यह सब कुछ नबूकदनज़र बादशाह पर गुज़रा।
29एक साल बाद वह बाबुल के शाही महल में टहल रहा था।
30बादशाह ने फ़रमाया, “क्या यह बाबुल — ए — आज़म नहीं, जिसको मैने अपनी तवानाई की कु़दरत से ता'मीर किया है कि दार — उस — सल्तनत और मेरे जाह — ओ — जलाल का नमूना हो?”
31बादशाह यह बात कह ही रहा था कि आसमान से आवाज़ आई, ऐ नबूकदनज़र बादशाह, तेरे हक़ में यह फ़तवा है कि सल्तनत तुझ से जाती रही।
32और तुझे आदमियों में से हाँक कर निकाल देंगे, और तू मैदान के हैवानों के साथ रहेगा और बैल की तरह घास खाएगा, और सात दौर तुझ पर गुज़ेरेंगे, तब तुझको मा'लूम होगा कि हक़ त'आला आदमियों की ममलुकत में हुक्मरानी करता है, और उसे जिसको चाहता है, देता है।
33उसी वक़्त नबूकदनज़र बादशाह पर यह बात पूरी हुई, और वह आदमियों में से निकाला गया और बैलों की तरह घास खाता रहा और उसका बदन आसमान की शबनम से तर हुआ, यहाँ तक कि उसके बाल उक़ाब के परों की तरह और उसके नाख़ून परिन्दों के चँगुल की तरह बढ़ गए।
34और इन दिनों के गुज़रने के बा'द, मैं नबूकदनज़र ने आसमान की तरफ़ आँखें उठाई और मेरी 'अक़्ल मुझमे फिर आई और मैने हक़ — त'आला का शुक्र किया, और उस हय्युल — क़य्यूम की बड़ाई — ओ — सना की, जिसकी सल्तनत हमेशा और जिसकी ममलुकत नसल — दर — नसल है।
35और ज़मीन के तमाम बाशिन्दे नाचीज़ गिने जाते हैं और वह आसमानी लश्कर और ज़मीन के रहने वालों के साथ जो कुछ चाहता है करता है; और कोई नहीं जो उसका हाथ रोक सके। या उससे कहे कि “तू क्या करता है?”
36उसी वक़्त मेरी 'अक़्ल मुझ में फिर आई, और मेरी सल्तनत की शौकत के लिए मेरा रौ'ब और दबदबा फिर मुझमे बहाल हो गया, और मेरे सलाहकारों और अमीरों ने मुझे फिर ढूँडा और मैं अपनी ममलुकत में क़ाईम हुआ और मेरी 'अज़मत में अफ़ज़ूनी हुई।

37अब मैं नबूकदनज़र, आसमान के बादशाह की बड़ाई और 'इज़्ज़त — ओ — ता'ज़ीम करता हूँ, क्यूँकि वह अपने सब कामों में रास्त और अपनी सब राहों में 'इन्साफ़ करता है; और जो मग़रूरी में चलते हैं उनको ज़लील कर सकता है।