3ऐ दग़ाबाज़ ज़बान, तुझे क्या दिया जाए? और तुझ से और क्या किया जाए?
4ज़बरदस्त के तेज़ तीर, झाऊ के अंगारों के साथ।
5मुझ पर अफ़सोस कि मैं मसक में बसता, और क़ीदार के ख़ैमों में रहता हूँ।
6सुलह के दुश्मन के साथ रहते हुए, मुझे बड़ी मुद्दत हो गई।
7मैं तो सुलह दोस्त हूँ। लेकिन जब बोलता हूँ तो वह जंग पर आमादा हो जाते हैं।