3जब कुप्रुस शहर नज़र आया तो उसे बाएँ हाथ छोड़कर सुरिया को चले, और सूर शहर में उतरे, क्यूँकि वहाँ जहाज़ का माल उतारना था।
4जब शागिर्दों को तलाश कर लिया तो हम सात रोज़ वहाँ रहे; उन्हों ने रूह के ज़रिए पौलुस से कहा, कि येरूशलेम में क़दम न रखना।
5और जब वो दिन गुज़र गए, तो ऐसा हुआ कि हम निकल कर रवाना हुए, और सब ने बीवियों बच्चों समेत हम को शहर से बाहर तक पहुँचाया। फिर हम ने समुन्दर के किनारे घुटने टेककर दुआ की।
6और एक दूसरे से विदा होकर हम तो जहाज़ पर चढ़े, और वो अपने अपने घर वापस चले गए।
7और हम सूर से जहाज़ का सफ़र पूरा कर के पतुलिमयिस सूबा में पहुँचे, और भाइयों को सलाम किया, और एक दिन उनके साथ रहे।
8दूसरे दिन हम रवाना होकर क़ैसरिया में आए, और फ़िलिप्पुस मुबश्शिर के घर जो उन सातों में से था, उतर कर उसके साथ रहे,
9उस की चार कुँवारी बेटियाँ थीं, जो नबुव्वत करती थीं।
10जब हम वहाँ बहुत रोज़ रहे, तो अगबुस नाम एक नबी यहूदिया से आया।
11उस ने हमारे पास आकर पौलुस का कमरबन्द लिया और अपने हाथ पाँव बाँध कर कहा, रूह — उल — क़ुद्दूस यूँ फ़रमाता है “कि जिस शख़्स का ये कमरबन्द है उस को यहूदी येरूशलेम में इसी तरह बाँधेगे और ग़ैर क़ौमों के हाथ में सुपुर्द करेंगे।”
12जब ये सुना तो हम ने और वहाँ के लोगों ने उस की मिन्नत की, कि येरूशलेम को न जाए।
13मगर पौलुस ने जवाब दिया, कि तुम क्या करते हो? क्यूँ रो रो कर मेरा दिल तोड़ते हो? में तो येरूशलेम में ख़ुदावन्द ईसा मसीह “के नाम पर न सिर्फ़ बाँधे जाने बल्कि मरने को भी तैयार हूँ।”
14जब उस ने न माना तो हम ये कह कर चुप हो गए “कि ख़ुदावन्द की मर्ज़ी पूरी हो।”
15उन दिनों के बाद हम अपने सफ़र का सामान तैयार करके येरूशलेम को गए।
16और क़ैसरिया से भी कुछ शागिर्द हमारे साथ चले और एक पुराने शागिर्द मनासोन कुप्रीस के रहने वाले को साथ ले आए, ताकि हम उस के मेहमान हों।
17जब हम येरूशलेम में पहुँचे तो ईमानदार भाई बड़ी ख़ुशी के साथ हम से मिले।
18और दूसरे दिन पौलुस हमारे साथ या'क़ूब के पास गया, और सब बुज़ुर्ग वहाँ हाज़िर थे।
19उस ने उन्हें सलाम करके जो कुछ ख़ुदा ने उस की ख़िदमत से ग़ैर क़ौमों में किया था, एक एक कर के बयान किया।
20उन्होंने ये सुन कर ख़ुदा की तारीफ़ की फिर उस से कहा, ऐ भाई तू देखता है, कि यहूदियों में हज़ारों आदमी ईमान ले आए हैं, और वो सब शरी'अत के बारे में सरगर्म हैं।
21और उन को तेरे बारे में सिखा दिया गया है, कि तू ग़ैर क़ौमों में रहने वाले सब यहूदियों को ये कह कर मूसा से फिर जाने की ता'लीम देता है, कि न अपने लड़कों का ख़तना करो न मूसा की रस्मों पर चलो।
22पस, क्या किया जाए? लोग ज़रूर सुनेंगे, कि तू आया है।
23इसलिए जो हम तुझ से कहते हैं वो कर; हमारे यहाँ चार आदमी ऐसे हैं, जिन्हों ने मन्नत मानी है।
24उन्हें ले कर अपने आपको उन के साथ पाक कर और उनकी तरफ़ से कुछ ख़र्च कर, ताकि वो सिर मुंडाएँ, तो सब जान लेंगे कि जो बातें उन्हें तेरे बारे में सिखाई गई हैं, उन की कुछ असल नहीं बल्कि तू ख़ुद भी शरी'अत पर अमल करके दुरुस्ती से चलता है।
25मगर ग़ैर क़ौमों में से जो ईमान लाए उनके बारे में हम ने ये फ़ैसला करके लिखा था, कि वो सिर्फ़ बुतों की क़ुर्बानी के गोश्त से और लहू और गला घोंटे हुए जानवरों और हरामकारी से अपने आप को बचाए रखें।
26इस पर पौलुस उन आदमियों को लेकर और दूसरे दिन अपने आपको उनके साथ पाक करके हैकल में दाख़िल हुआ और ख़बर दी कि जब तक हम में से हर एक की नज़्र न चढ़ाई जाए तक़द्दुस के दिन पूरे करेंगे।