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इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019 - लूका - लूका 9

लूका 9:3-30

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3और उनसे कहा, “राह के लिए कुछ न लेना, न लाठी, न झोली, न रोटी, न रुपए, न दो दो कुरते रखना।
4और जिस घर में दाख़िल हो वहीं रहना और वहीं से रवाना होना;
5और जिस शहर के लोग तुम्हें क़ुबूल ना करें, उस शहर से निकलते वक़्त अपने पाँव की धूल झाड़ देना ताकि उन पर गवाही हो।”
6पस वो रवाना होकर गाँव गाँव ख़ुशख़बरी सुनाते और हर जगह शिफ़ा देते फिरे।
7चौथाई मुल्क का हाकिम हेरोदेस सब अहवाल सुन कर घबरा गया, इसलिए कि कुछ ये कहते थे कि युहन्ना मुर्दों में से जी उठा है,
8और कुछ ये कि एलियाह ज़ाहिर हुआ, और कुछ ये कि क़दीम नबियों में से कोई जी उठा है।
9मगर हेरोदेस ने कहा, “युहन्ना का तो मैं ने सिर कटवा दिया, अब ये कौन जिसके बारे में ऐसी बातें सुनता हूँ?” पस उसे देखने की कोशिश में रहा।
10फिर रसूलों ने जो कुछ किया था लौटकर उससे बयान किया; और वो उनको अलग लेकर बैतसैदा नाम एक शहर को चला गया।
11ये जानकर भीड़ उसके पीछे गई और वो ख़ुशी के साथ उनसे मिला और उनसे ख़ुदा की बादशाही की बातें करने लगा, और जो शिफ़ा पाने के मुहताज थे उन्हें शिफ़ा बख़्शी।
12जब दिन ढलने लगा तो उन बारह ने आकर उससे कहा, “भीड़ को रुख़्सत कर के चारों तरफ़ के गाँव और बस्तियों में जा टिकें और खाने का इन्तिज़ाम करें।” क्यूँकि हम यहाँ वीरान जगह में हैं।
13उसने उनसे कहा, “तुम ही उन्हें खाने को दो,” उन्होंने कहा, “हमारे पास सिर्फ़ पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ है, मगर हाँ हम जा जाकर इन सब लोगों के लिए खाना मोल ले आएँ।”
14क्यूँकि वो पाँच हज़ार मर्द के क़रीब थे। उसने अपने शागिर्दों से कहा, “उनको तक़रीबन पचास — पचास की क़तारों में बिठाओ।”
15उन्होंने उसी तरह किया और सब को बिठाया।
16फिर उसने वो पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं और आसमान की तरफ़ देख कर उन पर बर्क़त बख़्शी, और तोड़कर अपने शागिर्दों को देता गया कि लोगों के आगे रख्खें।
17उन्होंने खाया और सब सेर हो गए, और उनके बचे हुए बे इस्तेमाल खाने की बारह टोकरियाँ उठाई गईं।
18जब वो तन्हाई में दुआ कर रहा था और शागिर्द उसके पास थे, तो ऐसा हुआ कि उसने उनसे पूछा, “लोग मुझे क्या कहते हैं?”
19उन्होंने जवाब में कहा, “युहन्ना बपतिस्मा देनेवाला और कुछ एलियाह कहते हैं, और कुछ ये कि पुराने नबियों में से कोई जी उठा है।”
20उसने उनसे कहा, “लेकिन तुम मुझे क्या कहते हो?” पतरस ने जवाब में कहा, “ख़ुदावन्द का मसीह।”
21उसने उनको हिदायत करके हुक्म दिया कि ये किसी से न कहना,
22और कहा, “ज़रूर है इब्न — ए — आदम बहुत दुःख उठाए और बुज़ुर्ग और सरदार काहिन और आलिम उसे रद्द करें और वो क़त्ल किया जाए और तीसरे दिन जी उठे।”
23और उसने सब से कहा, “अगर कोई मेरे पीछे आना चाहे तो अपने आप से इनकार करे और हर रोज़ अपनी सलीब उठाए और मेरे पीछे हो ले।
24क्यूँकि जो कोई अपनी जान बचाना चाहे, वो उसे खोएगा और जो कोई मेरी ख़ातिर अपनी जान खोए वही उसे बचाएगा।
25और आदमी अगर सारी दुनिया को हासिल करे और अपनी जान को खो दे या नुक़्सान उठाए तो उसे क्या फ़ाइदा होगा?
26क्यूँकि जो कोई मुझ से और मेरी बातों से शरमाएगा, इब्न — ए — आदम भी जब अपने और अपने बाप के और पाक फ़रिश्तों के जलाल में आएगा तो उस से शरमाएगा।
27लेकिन मैं तुम से सच कहता हूँ कि उनमें से जो यहाँ खड़े हैं कुछ ऐसे हैं कि जब तक ख़ुदा की बादशाही को देख न लें मौत का मज़ा हरगिज़ न चखेंगे।”
28फिर इन बातों के कोई आठ रोज़ बाद ऐसा हुआ, कि वो पतरस और यूहन्ना और या'क़ूब को साथ लेकर पहाड़ पर दुआ करने गया।
29जब वो दुआ कर रहा था, तो ऐसा हुआ कि उसके चेहरे की सूरत बदल गई, और उसकी पोशाक सफ़ेद बर्राक़ हो गई।
30और देखो, दो शख़्स या'नी मूसा और एलियाह उससे बातें कर रहे थे।

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