11तेरे क्रोध की शक्ति को और तेरे भय के योग्य तेरे रोष को कौन समझता है?
12हमको अपने दिन गिनने की समझ दे* कि हम बुद्धिमान हो जाएँ।
13हे यहोवा, लौट आ! कब तक? और अपने दासों पर तरस खा!
14भोर को हमें अपनी करुणा से तृप्त कर, कि हम जीवन भर जयजयकार और आनन्द करते रहें।
15जितने दिन तू हमें दुःख देता आया, और जितने वर्ष हम क्लेश भोगते आए हैं उतने ही वर्ष हमको आनन्द दे।
16तेरा काम तेरे दासों को, और तेरा प्रताप उनकी सन्तान पर प्रगट हो।