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पवित्र बाइबिल - भजन संहिता - भजन संहिता 73

भजन संहिता 73:5-22

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5उनको दूसरे मनुष्यों के समान कष्ट नहीं होता; और अन्य मनुष्यों के समान उन पर विपत्ति नहीं पड़ती।
6इस कारण अहंकार उनके गले का हार बना है; उनका ओढ़ना उपद्रव है।
7उनकी आँखें चर्बी से झलकती हैं, उनके मन की भवनाएँ उमड़ती हैं।
8वे ठट्ठा मारते हैं, और दुष्टता से हिंसा की बात बोलते हैं; वे डींग मारते हैं।
9वे मानो स्वर्ग में बैठे हुए बोलते हैं*, और वे पृथ्वी में बोलते फिरते हैं।
10इसलिए उसकी प्रजा इधर लौट आएगी, और उनको भरे हुए प्याले का जल मिलेगा।
11फिर वे कहते हैं, “परमेश्‍वर कैसे जानता है? क्या परमप्रधान को कुछ ज्ञान है?”
12देखो, ये तो दुष्ट लोग हैं; तो भी सदा आराम से रहकर, धन सम्पत्ति बटोरते रहते हैं।
13निश्चय, मैंने अपने हृदय को व्यर्थ शुद्ध किया और अपने हाथों को निर्दोषता में धोया है;
14क्योंकि मैं दिन भर मार खाता आया हूँ और प्रति भोर को मेरी ताड़ना होती आई है।
15यदि मैंने कहा होता, “मैं ऐसा कहूँगा”, तो देख मैं तेरे सन्तानों की पीढ़ी के साथ छल करता,
16जब मैं सोचने लगा कि इसे मैं कैसे समझूँ, तो यह मेरी दृष्टि में अति कठिन समस्या थी,
17जब तक कि मैंने परमेश्‍वर के पवित्रस्‍थान में जाकर उन लोगों के परिणाम को न सोचा।
18निश्चय तू उन्हें फिसलनेवाले स्थानों में रखता है; और गिराकर सत्यानाश कर देता है।
19वे क्षण भर में कैसे उजड़ गए हैं! वे मिट गए, वे घबराते-घबराते नाश हो गए हैं।
20जैसे जागनेवाला स्वप्न को तुच्छ जानता है, वैसे ही हे प्रभु जब तू उठेगा, तब उनको छाया सा समझकर तुच्छ जानेगा।
21मेरा मन तो कड़ुवा हो गया था, मेरा अन्तःकरण छिद गया था,
22मैं अबोध और नासमझ था, मैं तेरे सम्‍मुख मूर्ख पशु के समान था।*

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