12क्या ही धन्य है वह जाति जिसका परमेश्वर यहोवा है, और वह समाज जिसे उसने अपना निज भाग होने के लिये चुन लिया हो!
13यहोवा स्वर्ग से दृष्टि करता है, वह सब मनुष्यों को निहारता है;
14अपने निवास के स्थान से वह पृथ्वी के सब रहनेवालों को देखता है,
15वही जो उन सभी के हृदयों को गढ़ता, और उनके सब कामों का विचार करता है।
16कोई ऐसा राजा नहीं, जो सेना की बहुतायत के कारण बच सके; वीर अपनी बड़ी शक्ति के कारण छूट नहीं जाता।
17विजय पाने के लिए घोड़ा व्यर्थ सुरक्षा है, वह अपने बड़े बल के द्वारा किसी को नहीं बचा सकता है।
18देखो, यहोवा की दृष्टि उसके डरवैयों पर और उन पर जो उसकी करुणा की आशा रखते हैं, बनी रहती है,