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पवित्र बाइबिल - नीतिवचन - नीतिवचन 7

नीतिवचन 7:12-26

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12कभी वह सड़क में, कभी चौक में पाई जाती थी, और एक-एक कोने पर वह बाट जोहती थी।
13तब उसने उस जवान को पकड़कर चूमा, और निर्लज्जता की चेष्टा करके उससे कहा,
14“मैंने आज ही मेलबलि चढ़ाया* और अपनी मन्नतें पूरी की;
15इसी कारण मैं तुझ से भेंट करने को निकली, मैं तेरे दर्शन की खोजी थी, और अभी पाया है।
16मैंने अपने पलंग के बिछौने पर मिस्र के बेलबूटेवाले कपड़े बिछाए हैं;
17मैंने अपने बिछौने पर गन्धरस, अगर और दालचीनी छिड़की है।
18इसलिए अब चल हम प्रेम से भोर तक जी बहलाते रहें; हम परस्पर की प्रीति से आनन्दित रहें।
19क्योंकि मेरा पति घर में नहीं है; वह दूर देश को चला गया है;
20वह चाँदी की थैली ले गया है; और पूर्णमासी को लौट आएगा।”
21ऐसी ही लुभानेवाली बातें कह कहकर, उसने उसको फँसा लिया; और अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से उसको अपने वश में कर लिया।
22वह तुरन्त उसके पीछे हो लिया, जैसे बैल कसाई-खाने को, या हिरन फंदे में कदम रखता है।
23अन्त में उस जवान का कलेजा तीर से बेधा जाएगा; वह उस चिड़िया के समान है जो फंदे की ओर वेग से उड़ती है और नहीं जानती कि उससे उसके प्राण जाएँगे।
24अब हे मेरे पुत्रों, मेरी सुनो, और मेरी बातों पर मन लगाओ।
25तेरा मन ऐसी स्त्री के मार्ग की ओर न फिरे, और उसकी डगरों में भूल कर भी न जाना;
26क्योंकि बहुत से लोग उसके द्वारा मारे गए है*; उसके घात किए हुओं की एक बड़ी संख्या होगी।

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