7ऐ ख़ुदावन्द मेरे मालिक, ऐ मेरी नजात की ताक़त, तूने जंग के दिन मेरे सिर पर साया किया है।
8ऐ ख़ुदावन्द, शरीर की मुराद पूरी न कर, उसके बुरे मन्सूबे को अंजाम न दे ताकि वह डींग न मारे। सिलाह
9मुझे घेरने वालों की मुँह के शरारत, उन्हीं के सिर पर पड़े।
10उन पर अंगारे गिरें! वह आग में डाले जाएँ! और ऐसे गढ़ों में कि फिर न उठे।