44और अन्दरूनी फाटक से बाहर अन्दरूनी सहन में जो उत्तरी फाटक की जानिब था, गाने वालों के कमरे थे और उनका रुख़ दक्खिन की तरफ़ था, और एक पूरबी फाटक की जानिब था जिसका रुख़ उत्तर की तरफ़ था।
45और उसने मुझ से कहा, कि “यह कमरा जिसका रुख़ दक्खिन की तरफ़ है, उन काहिनों के लिए है जो घर की निगहबानी करते हैं;
46और वह कमरा जिसका रुख़ उत्तर की तरफ़ है, उन काहिनों के लिए है जो मज़बह की मुहाफ़िज़त में हाज़िर हैं; यह बनी सदूक़ हैं जो बनी लावी में से ख़ुदावन्द के सामने आते हैं कि उसकी ख़िदमत करें।”
47और उसने सहन को सौ हाथ लम्बा और सौ हाथ चौड़ा मुरब्बा नापा और मज़बह घर के सामने था।