24जो कुछ है सो दूर और बहुत गहरा है, उसे कौन पा सकता
25मैंने अपने दिल को मुतवज्जिह किया कि जानूँ और तफ़्तीश करूँ और हिकमत और ख़िरद को दरियाफ़्त करूँ और समझूँ कि बुराई हिमाक़त है और हिमाक़त दीवानगी।
26तब मैंने मौत से तल्ख़तर उस 'औरत को पाया, जिसका दिल फंदा और जाल है और जिसके हाथ हथकड़ियाँ हैं। जिससे ख़ुदा ख़ुश है वह उस से बच जाएगा, लेकिन गुनहगार उसका शिकार होगा।
27देख, वा'इज़ कहता है, मैंने एक दूसरे से मुक़ाबला करके ये दरियाफ़्त किया है।
28जिसकी मेरे दिल को अब तक तलाश है पर मिला नहीं। मैंने हज़ार में एक मर्द पाया, लेकिन उन सभों में 'औरत एक भी न मिली।