27मर्था ने जवाब दिया, “जी ख़ुदावन्द, मैं ईमान रखती हूँ कि आप ख़ुदा के फ़र्ज़न्द मसीह हैं, जिसे दुनियाँ में आना था।”
28यह कह कर मर्था वापस चली गई और चुपके से मरियम को बुलाया, “उस्ताद आ गए हैं, वह तुझे बुला रहे हैं।”
29यह सुनते ही मरियम उठ कर ईसा के पास गई।
30वह अभी गाँव के बाहर उसी जगह ठहरा था जहाँ उस की मुलाक़ात मर्था से हुई थी।
31जो यहूदी घर में मरियम के साथ बैठे उसे तसल्ली दे रहे थे, जब उन्हों ने देखा कि वह जल्दी से उठ कर निकल गई है तो वह उस के पीछे हो लिए। क्यूँकि वह समझ रहे थे कि वह मातम करने के लिए अपने भाई की क़ब्र पर जा रही है।
32मरियम ईसा के पास पहुँच गई। उसे देखते ही वह उस के पैरों में गिर गई और कहने लगी, “ख़ुदावन्द, अगर आप यहाँ होते तो मेरा भाई न मरता।”
33जब ईसा ने मरियम और उस के लोगों को रोते देखा तो उसे दुःख हुआ। और उसने ताअ'ज्जुब होकर
34उस ने पूछा, “तुम ने उसे कहाँ रखा है?” उन्हों ने जवाब दिया, “आएँ ख़ुदावन्द, और देख लें।”