23मनुष्य की गति यहोवा की ओर से दृढ़ होती है*, और उसके चलन से वह प्रसन्न रहता है;
24चाहे वह गिरे तो भी पड़ा न रह जाएगा, क्योंकि यहोवा उसका हाथ थामे रहता है।
25मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूँ; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े माँगते देखा है।
26वह तो दिन भर अनुग्रह कर-करके ऋण देता है, और उसके वंश पर आशीष फलती रहती है।
27बुराई को छोड़ भलाई कर; और तू सर्वदा बना रहेगा।