4वे कहते हैं, “हम अपनी जीभ ही से जीतेंगे, हमारे होंठ हमारे ही वश में हैं; हम पर कौन शासन कर सकेगा?”
5दीन लोगों के लुट जाने, और दरिद्रों के कराहने के कारण, यहोवा कहता है, “अब मैं उठूँगा, जिस पर वे फुँकारते हैं उसे मैं चैन विश्राम दूँगा।”
6यहोवा का वचन पवित्र है, उस चाँदी के समान जो भट्ठी में मिट्टी पर ताई गई, और सात बार निर्मल की गई हो*।