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पवित्र बाइबिल - नीतिवचन - नीतिवचन 6

नीतिवचन 6:8-30

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8फिर भी वे अपना आहार धूपकाल में संचय करती हैं, और कटनी के समय अपनी भोजनवस्तु बटोरती हैं।
9हे आलसी, तू कब तक सोता रहेगा? तेरी नींद कब टूटेगी?
10थोड़ी सी नींद, एक और झपकी, थोड़ा और छाती पर हाथ रखे लेटे रहना,
11तब तेरा कंगालपन राह के लुटेरे के समान और तेरी घटी हथियारबंद के समान आ पड़ेगी।
12ओछे और अनर्थकारी* को देखो, वह टेढ़ी-टेढ़ी बातें बकता फिरता है,
13वह नैन से सैन और पाँव से इशारा, और अपनी अंगुलियों से संकेत करता है,
14उसके मन में उलट फेर की बातें रहतीं, वह लगातार बुराई गढ़ता है और झगड़ा रगड़ा उत्‍पन्‍न करता है।
15इस कारण उस पर विपत्ति अचानक आ पड़ेगी, वह पल भर में ऐसा नाश हो जाएगा, कि बचने का कोई उपाय न रहेगा।
16छः वस्तुओं से यहोवा बैर रखता है, वरन् सात हैं जिनसे उसको घृणा है'
17अर्थात् घमण्ड से चढ़ी हुई आँखें, झूठ बोलनेवाली जीभ, और निर्दोष का लहू बहानेवाले हाथ,
18अनर्थ कल्पना गढ़नेवाला मन, बुराई करने को वेग से दौड़नेवाले पाँव,
19झूठ बोलनेवाला साक्षी और भाइयों के बीच में झगड़ा उत्‍पन्‍न करनेवाला मनुष्य।
20हे मेरे पुत्र, अपने पिता की आज्ञा को मान, और अपनी माता की शिक्षा को न तज।
21उनको अपने हृदय में सदा गाँठ बाँधे रख; और अपने गले का हार बना ले।
22वह तेरे चलने में तेरी अगुआई, और सोते समय तेरी रक्षा, और जागते समय तुझे शिक्षा देगी।
23आज्ञा तो दीपक है और शिक्षा ज्योति, और अनुशासन के लिए दी जानेवाली डाँट जीवन का मार्ग है,
24वे तुझको अनैतिक स्त्री* से और व्यभिचारिणी की चिकनी चुपड़ी बातों से बचाएगी।
25उसकी सुन्दरता देखकर अपने मन में उसकी अभिलाषा न कर; वह तुझे अपने कटाक्ष से फँसाने न पाए;
26क्योंकि वेश्यागमन के कारण मनुष्य रोटी के टुकड़ों का भिखारी हो जाता है, परन्तु व्यभिचारिणी अनमोल जीवन का अहेर कर लेती है।
27क्या हो सकता है कि कोई अपनी छाती पर आग रख ले; और उसके कपड़े न जलें?
28क्या हो सकता है कि कोई अंगारे पर चले, और उसके पाँव न झुलसें?
29जो पराई स्त्री के पास जाता है, उसकी दशा ऐसी है; वरन् जो कोई उसको छूएगा वह दण्ड से न बचेगा।
30जो चोर भूख के मारे अपना पेट भरने के लिये चोरी करे, उसको तो लोग तुच्छ नहीं जानते;

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