27वेश्या गहरा गड्ढा ठहरती है; और पराई स्त्री सकेत कुएँ के समान है।
28वह डाकू के समान घात लगाती है, और बहुत से मनुष्यों को विश्वासघाती बना देती है।
29कौन कहता है, हाय? कौन कहता है, हाय, हाय? कौन झगड़े रगड़े में फँसता है? कौन बक-बक करता है? किसके अकारण घाव होते हैं? किसकी आँखें लाल हो जाती हैं?
30उनकी जो दाखमधु देर तक पीते हैं, और जो मसाला मिला हुआ दाखमधु* ढूँढ़ने को जाते हैं।
31जब दाखमधु लाल दिखाई देता है, और कटोरे में उसका सुन्दर रंग होता है, और जब वह धार के साथ उण्डेला जाता है, तब उसको न देखना। (इफिसियों 5:18)
32क्योंकि अन्त में वह सर्प के समान डसता है, और करैत के समान काटता है।
33तू विचित्र वस्तुएँ देखेगा, और उलटी-सीधी बातें बकता रहेगा।