Text copied!
CopyCompare
पवित्र बाइबिल - नीतिवचन - नीतिवचन 18

नीतिवचन 18:2-13

Help us?
Click on verse(s) to share them!
2मूर्ख का मन समझ की बातों में नहीं लगता, वह केवल अपने मन की बात प्रगट करना चाहता है*।
3जहाँ दुष्टता आती, वहाँ अपमान भी आता है; और निरादर के साथ निन्दा आती है।
4मनुष्य के मुँह के वचन गहरे जल होते है; बुद्धि का स्रोत बहती धारा के समान हैं।
5दुष्ट का पक्ष करना, और धर्मी का हक़ मारना, अच्छा नहीं है।
6बात बढ़ाने से मूर्ख मुकद्दमा खड़ा करता है, और अपने को मार खाने के योग्य दिखाता है।
7मूर्ख का विनाश उसकी बातों से होता है, और उसके वचन उसके प्राण के लिये फंदे होते हैं।
8कानाफूसी करनेवाले के वचन स्वादिष्ट भोजन के समान लगते हैं; वे पेट में पच जाते हैं।
9जो काम में आलस करता है, वह बिगाड़नेवाले का भाई ठहरता है।
10यहोवा का नाम दृढ़ गढ़ है; धर्मी उसमें भागकर सब दुर्घटनाओं से बचता है।
11धनी का धन उसकी दृष्टि में शक्तिशाली नगर* है, और उसकी कल्पना ऊँची शहरपनाह के समान है।
12नाश होने से पहले मनुष्य के मन में घमण्ड, और महिमा पाने से पहले नम्रता होती है।
13जो बिना बात सुने उत्तर देता है, वह मूर्ख ठहरता है, और उसका अनादर होता है।

Read नीतिवचन 18नीतिवचन 18
Compare नीतिवचन 18:2-13नीतिवचन 18:2-13