8घूस देनेवाला व्यक्ति घूस को मोह लेनेवाला मणि समझता है; ऐसा पुरुष जिधर फिरता, उधर उसका काम सफल होता है।
9जो दूसरे के अपराध को ढाँप देता* है, वह प्रेम का खोजी ठहरता है, परन्तु जो बात की चर्चा बार-बार करता है, वह परम मित्रों में भी फूट करा देता है।
10एक घुड़की समझनेवाले के मन में जितनी गड़ जाती है, उतना सौ बार मार खाना मूर्ख के मन में नहीं गड़ता।
11बुरा मनुष्य दंगे ही का यत्न करता है, इसलिए उसके पास क्रूर दूत भेजा जाएगा।
12बच्चा-छीनी-हुई-रीछनी से मिलना, मूर्खता में डूबे हुए मूर्ख से मिलने से बेहतर है।
13जो कोई भलाई के बदले में बुराई करे, उसके घर से बुराई दूर न होगी।
14झगड़े का आरम्भ बाँध के छेद के समान है, झगड़ा बढ़ने से पहले उसको छोड़ देना उचित है।
15जो दोषी को निर्दोष, और जो निर्दोष को दोषी ठहराता है, उन दोनों से यहोवा घृणा करता है।