5तू न रात के ख़ौफ़ से डरेगा, न दिन को उड़ने वाले तीर से।
6न उस वबा से जो अंधेरे में चलती है, न उस हलाकत से जो दोपहर को वीरान करती है।
7तेरे आसपास एक हज़ार गिर जाएँगे, और तेरे दहने हाथ की तरफ़ दस हज़ार; लेकिन वह तेरे नज़दीक न आएगी।
8लेकिन तू अपनी आँखों से निगाह करेगा, और शरीरों के अंजाम को देखेगा।
9लेकिन तू ऐ ख़ुदावन्द, मेरी पनाह है। तूने हक़ता'ला को अपना घर बना लिया है।
10तुझ पर कोई आफ़त नहीं आएगी, और कोई वबा तेरे ख़ेमे के नज़दीक न पहुँचेगी।