2मैं सोती हूँ, लेकिन मेरा दिल जागता है। मेरे महबूब की आवाज़ है जो खटखटाता है, और कहता है, “मेरे लिए दरवाज़ा खोल, मेरी महबूबा, मेरी प्यारी! मेरी कबूतरी, मेरी पाकीज़ा, क्यूँकि मेरा सिर शबनम से तर है, और मेरी जु़ल्फे़ रात की बूँदों से भरी हैं।”
3मैं तो कपड़े उतार चुकी, अब फिर कैसे पहनूँ? मैं तो अपने पाँव धो चुकी, अब उनको क्यूँ मैला करूँ?