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पवित्र बाइबिल - सभोपदेशक - सभोपदेशक 5

सभोपदेशक 5:9-20

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9भूमि की उपज सब के लिये है, वरन् खेती से राजा का भी काम निकलता है।
10जो रुपये से प्रीति रखता है वह रुपये से तृप्त न होगा; और न जो बहुत धन से प्रीति रखता है, लाभ से यह भी व्यर्थ है।
11जब सम्पत्ति बढ़ती है, तो उसके खानेवाले भी बढ़ते हैं, तब उसके स्वामी को इसे छोड़ और क्या लाभ होता है कि उस सम्पत्ति को अपनी आँखों से देखे?
12परिश्रम करनेवाला चाहे थोड़ा खाए, या बहुत, तो भी उसकी नींद सुखदाई होती है; परन्तु धनी के धन बढ़ने के कारण उसको नींद नहीं आती।
13मैंने धरती पर* एक बड़ी बुरी बला देखी है; अर्थात् वह धन जिसे उसके मालिक ने अपनी ही हानि के लिये रखा हो,
14और वह किसी बुरे काम में उड़ जाता है; और उसके घर में बेटा उत्‍पन्‍न होता है परन्तु उसके हाथ में कुछ नहीं रहता।
15जैसा वह माँ के पेट से निकला वैसा ही लौट जाएगा; नंगा ही, जैसा आया था, और अपने परिश्रम के बदले कुछ भी न पाएगा जिसे वह अपने हाथ में ले जा सके। (1 तीमु. 6:7)
16यह भी एक बड़ी बला है कि जैसा वह आया, ठीक वैसा ही वह जाएगा; उसे उस व्यर्थ परिश्रम से और क्या लाभ है?
17केवल इसके कि उसने जीवन भर बेचैनी से भोजन किया, और बहुत ही दुःखित और रोगी रहा और क्रोध भी करता रहा?
18सुन, जो भली बात मैंने देखी है, वरन् जो उचित है, वह यह कि मनुष्य खाए और पीए और अपने परिश्रम से जो वह धरती पर करता है, अपनी सारी आयु भर जो परमेश्‍वर ने उसे दी है, सुखी रहे क्योंकि उसका भाग यही है।
19वरन् हर एक मनुष्य जिसे परमेश्‍वर ने धन सम्पत्ति दी हो, और उनसे आनन्द भोगने और उसमें से अपना भाग लेने और परिश्रम करते हुए आनन्द करने को शक्ति भी दी हो यह परमेश्‍वर का वरदान है*।
20इस जीवन के दिन उसे बहुत स्मरण न रहेंगे, क्योंकि परमेश्‍वर उसकी सुन सुनकर उसके मन को आनन्दमय रखता है।

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