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पवित्र बाइबिल - सभोपदेशक - सभोपदेशक 5

सभोपदेशक 5:5-10

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5मन्नत मानकर पूरी न करने से मन्नत का न मानना ही अच्छा है।
6कोई वचन कहकर अपने को पाप में न फँसाना*, और न परमेश्‍वर के दूत के सामने कहना कि यह भूल से हुआ; परमेश्‍वर क्यों तेरा बोल सुनकर अप्रसन्न हो, और तेरे हाथ के कार्यों को नष्ट करे?
7क्योंकि स्वप्नों की अधिकता से व्यर्थ बातों की बहुतायत होती है: परन्तु तू परमेश्‍वर का भय मानना।।
8यदि तू किसी प्रान्त में निर्धनों पर अंधेर और न्याय और धर्म को बिगड़ता देखे, तो इससे चकित न होना; क्योंकि एक अधिकारी से बड़ा दूसरा रहता है जिसे इन बातों की सुधि रहती है, और उनसे भी और अधिक बड़े रहते हैं।
9भूमि की उपज सब के लिये है, वरन् खेती से राजा का भी काम निकलता है।
10जो रुपये से प्रीति रखता है वह रुपये से तृप्त न होगा; और न जो बहुत धन से प्रीति रखता है, लाभ से यह भी व्यर्थ है।

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