15जब मैं येरूशलेम में था, तो सरदार काहिनों और यहूदियों के बुज़ुर्गों ने उसके ख़िलाफ़ फ़रियाद की; और सज़ा के हुक्म की दरख़्वास्त की।
16उनको मैंने जवाब दिया'कि “रोमियों का ये दस्तूर नहीं कि किसी आदमियों को रि'आयतन सज़ा के लिए हवाले करें, जब कि मुद्द'अलिया को अपने मुद्द'इयों के रू — ब — रू हो कर दा, वे के जवाब देने का मौक़ा न मिले।”
17पस, जब वो यहाँ जमा हुए तो मैंने कुछ देर न की बल्कि दूसरे ही दिन तख़्त — ए अदालत पर बैठ कर उस आदमी को लाने का हुक्म दिया।
18मगर जब उसके मुद्द'ई खड़े हुए तो जिन बुराइयों का मुझे गुमान था, उनमें से उन्होंने किसी का इल्ज़ाम उस पर न लगाया।
19बल्कि अपने दीन और किसी शख़्स ईसा के बारे में उस से बहस करते थे, जो मर गया था, और पौलुस उसको ज़िन्दा बताता है।
20चूँकि मैं इन बातों की तहक़ीक़ात के बारे में उलझन में था, इस लिए उस से पूछा क्या तू येरूशलेम जाने को राज़ी है, कि वहाँ इन बातों का फ़ैसला हो?