34उन्होंने उससे कहा, ऐ ख़ुदावन्द! ये रोटी हम को हमेशा दिया कर।”
35ईसा ने उनसे कहा, “ज़िन्दगी की रोटी मैं हूँ; जो मेरे पास आए वो हरगिज़ भूखा न होगा, और जो मुझ पर ईमान लाए वो कभी प्यासा ना होगा।
36लेकिन मैंने तुम से कहा कि तुम ने मुझे देख लिया है फिर भी ईमान नहीं लाते।
37जो कुछ बाप मुझे देता है मेरे पास आ जाएगा, और जो कोई मेरे पास आएगा उसे मैं हरगिज़ निकाल न दूँगा।
38क्यूँकि मैं आसमान से इसलिए नहीं उतरा हूँ कि अपनी मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ 'अमल करूँ, बल्कि इसलिए कि अपने भेजनेवाले की मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ 'अमल करूँ।
39और मेरे भेजनेवाले की मर्ज़ी ये है, कि जो कुछ उसने मुझे दिया है मैं उसमें से कुछ खो न दूँ, बल्कि उसे आख़िरी दिन फिर ज़िन्दा करूँ।
40क्यूँकि मेरे बाप की मर्ज़ी ये है, कि जो कोई बेटे को देखे और उस पर ईमान लाए, और हमेशा की ज़िन्दगी पाए और मैं उसे आख़िरी दिन फिर ज़िन्दा करूँ।”
41पस यहूदी उस पर बुदबुदाने लगे, इसलिए कि उसने कहा, था, “जो रोटी आसमान से उतरी वो मैं हूँ।”
42और उन्होंने कहा, क्या ये युसूफ़ का बेटा 'ईसा नहीं, जिसके बाप और माँ को हम जानते हैं? अब ये क्यूँकर कहता है कि “मैं आसमान से उतरा हूँ?”
43ईसा ने जवाब में उनसे कहा, “आपस में न बुदबदाओ।
44कोई मेरे पास नहीं आ सकता जब तक कि बाप जिसने मुझे भेजा है उसे खींच न ले, और मैं उसे आख़िरी दिन फिर ज़िन्दा करूँगा।
45नबियों के सहीफ़ों में ये लिखा है: 'वो सब ख़ुदा से ता'लीम पाए हुए लोग होंगे।' जिस किसी ने बाप से सुना और सीखा है वो मेरे पास आता है —
46ये नहीं कि किसी ने बाप को देखा है, मगर जो ख़ुदा की तरफ़ से है उसी ने बाप को देखा है।
47मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जो ईमान लाता है हमेशा की ज़िन्दगी उसकी है।
48ज़िन्दगी की रोटी मैं हूँ।
49तुम्हारे बाप — दादा ने वीराने मैं मन्ना खाया और मर गए।
50ये वो रोटी है कि जो आसमान से उतरती है, ताकि आदमी उसमें से खाए और न मरे।
51मैं हूँ वो ज़िन्दगी की रोटी जो आसमान से उतरी। अगर कोई इस रोटी में से खाए तो हमेशा तक ज़िन्दा रहेगा, बल्कि जो रोटी मैं दुनियाँ की ज़िन्दगी के लिए दूँगा वो मेरा गोश्त है।”