3तूने अपने रोष को शान्त किया है; और अपने भड़के हुए कोप को दूर किया है।
4हे हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर, हमको पुनः स्थापित कर, और अपना क्रोध हम पर से दूर कर*!
5क्या तू हम पर सदा कोपित रहेगा? क्या तू पीढ़ी से पीढ़ी तक कोप करता रहेगा?
6क्या तू हमको फिर न जिलाएगा, कि तेरी प्रजा तुझ में आनन्द करे?
7हे यहोवा अपनी करुणा हमें दिखा, और तू हमारा उद्धार कर।
8मैं कान लगाए रहूँगा कि परमेश्वर यहोवा क्या कहता है, वह तो अपनी प्रजा से जो उसके भक्त है, शान्ति की बातें कहेगा; परन्तु वे फिरके मूर्खता न करने लगें।
9निश्चय उसके डरवैयों के उद्धार का समय निकट है*, तब हमारे देश में महिमा का निवास होगा।
10करुणा और सच्चाई आपस में मिल गई हैं; धर्म और मेल ने आपस में चुम्बन किया हैं।
11पृथ्वी में से सच्चाई उगती और स्वर्ग से धर्म झुकता है।