59परमेश्वर सुनकर रोष से भर गया, और उसने इस्राएल को बिल्कुल तज दिया।
60उसने शीलो के निवास, अर्थात् उस तम्बू को जो उसने मनुष्यों के बीच खडा किया था, त्याग दिया,
61और अपनी सामर्थ्य को बँधुवाई में जाने दिया, और अपनी शोभा को द्रोही के वश में कर दिया।
62उसने अपनी प्रजा को तलवार से मरवा दिया, और अपने निज भाग के विरुद्ध रोष से भर गया।
63उनके जवान आग से भस्म हुए, और उनकी कुमारियों के विवाह के गीत न गाएँ गए।
64उनके याजक तलवार से मारे गए, और उनकी विधवाएँ रोने न पाई।
65तब प्रभु मानो नींद से चौंक उठा*, और ऐसे वीर के समान उठा जो दाखमधु पीकर ललकारता हो।
66उसने अपने द्रोहियों को मारकर पीछे हटा दिया; और उनकी सदा की नामधराई कराई।
67फिर उसने यूसुफ के तम्बू को तज दिया; और एप्रैम के गोत्र को न चुना;
68परन्तु यहूदा ही के गोत्र को, और अपने प्रिय सिय्योन पर्वत को चुन लिया।