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पवित्र बाइबिल - भजन संहिता - भजन संहिता 78

भजन संहिता 78:29-39

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29और वे खाकर अति तृप्त हुए, और उसने उनकी कामना पूरी की।
30उनकी कामना बनी ही रही, उनका भोजन उनके मुँह ही में था,
31कि परमेश्‍वर का क्रोध उन पर भड़का, और उसने उनके हष्टपुष्टों को घात किया, और इस्राएल के जवानों को गिरा दिया। (1 कुरि. 10:5)
32इतने पर भी वे और अधिक पाप करते गए; और परमेश्‍वर के आश्चर्यकर्मों पर विश्वास न किया।
33तब उसने उनके दिनों को व्यर्थ श्रम में, और उनके वर्षों को घबराहट में कटवाया।
34जब वह उन्हें घात करने लगता*, तब वे उसको पूछते थे; और फिरकर परमेश्‍वर को यत्न से खोजते थे।
35उनको स्मरण होता था कि परमेश्‍वर हमारी चट्टान है, और परमप्रधान परमेश्‍वर हमारा छुड़ानेवाला है।
36तो भी उन्होंने उसकी चापलूसी की; वे उससे झूठ बोले।
37क्योंकि उनका हृदय उसकी ओर दृढ़ न था; न वे उसकी वाचा के विषय सच्चे थे। (प्रेरि. 8:21)
38परन्तु वह जो दयालु है, वह अधर्म को ढाँपता, और नाश नहीं करता; वह बार-बार अपने क्रोध को ठण्डा करता है, और अपनी जलजलाहट को पूरी रीति से भड़कने नहीं देता।
39उसको स्मरण हुआ कि ये नाशवान हैं, ये वायु के समान हैं जो चली जाती और लौट नहीं आती।

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