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पवित्र बाइबिल - भजन संहिता - भजन संहिता 78

भजन संहिता 78:19-32

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19वे परमेश्‍वर के विरुद्ध बोले, और कहने लगे, “क्या परमेश्‍वर जंगल में मेज लगा सकता है?
20उसने चट्टान पर मारके जल बहा तो दिया, और धाराएँ उमण्ड चली, परन्तु क्या वह रोटी भी दे सकता है? क्या वह अपनी प्रजा के लिये माँस भी तैयार कर सकता?”
21यहोवा सुनकर क्रोध से भर गया, तब याकूब के विरुद्ध उसकी आग भड़क उठी, और इस्राएल के विरुद्ध क्रोध भड़का;
22इसलिए कि उन्होंने परमेश्‍वर पर विश्वास नहीं रखा था, न उसकी उद्धार करने की शक्ति पर भरोसा किया।
23तो भी उसने आकाश को आज्ञा दी, और स्वर्ग के द्वारों को खोला;
24और उनके लिये खाने को मन्ना बरसाया, और उन्हें स्वर्ग का अन्न दिया। (निर्ग. 16:4, यूह. 6:31)
25मनुष्यों को स्वर्गदूतों की रोटी मिली; उसने उनको मनमाना भोजन दिया।
26उसने आकाश में पुरवाई को चलाया, और अपनी शक्ति से दक्षिणी बहाई;
27और उनके लिये माँस धूलि के समान बहुत बरसाया, और समुद्र के रेत के समान अनगिनत पक्षी भेजे;
28और उनकी छावनी के बीच में, उनके निवासों के चारों ओर गिराए।
29और वे खाकर अति तृप्त हुए, और उसने उनकी कामना पूरी की।
30उनकी कामना बनी ही रही, उनका भोजन उनके मुँह ही में था,
31कि परमेश्‍वर का क्रोध उन पर भड़का, और उसने उनके हष्टपुष्टों को घात किया, और इस्राएल के जवानों को गिरा दिया। (1 कुरि. 10:5)
32इतने पर भी वे और अधिक पाप करते गए; और परमेश्‍वर के आश्चर्यकर्मों पर विश्वास न किया।

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