5विपत्ति के दिनों में मैं क्यों डरूँ जब अधर्म मुझे आ घेरे?
6जो अपनी सम्पत्ति पर भरोसा रखते, और अपने धन की बहुतायत पर फूलते हैं,
7उनमें से कोई अपने भाई को किसी भाँति छुड़ा नहीं सकता है; और न परमेश्वर को उसके बदले प्रायश्चित में कुछ दे सकता है
8क्योंकि उनके प्राण की छुड़ौती भारी है वह अन्त तक कभी न चुका सकेंगे
9कोई ऐसा नहीं जो सदैव जीवित रहे, और कब्र को न देखे।