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पवित्र बाइबिल - भजन संहिता - भजन संहिता 18

भजन संहिता 18:34-48

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34वह मेरे हाथों को युद्ध करना सिखाता है, इसलिए मेरी बाहों से पीतल का धनुष झुक जाता है।
35तूने मुझ को अपने बचाव की ढाल दी है, तू अपने दाहिने हाथ से मुझे सम्भाले हुए है, और तेरी नम्रता ने मुझे महान बनाया है।
36तूने मेरे पैरों के लिये स्थान चौड़ा कर दिया*, और मेरे पैर नहीं फिसले।
37मैं अपने शत्रुओं का पीछा करके उन्हें पकड़ लूँगा; और जब तब उनका अन्त न करूँ तब तक न लौटूँगा।
38मैं उन्हें ऐसा बेधूँगा कि वे उठ न सकेंगे; वे मेरे पाँवों के नीचे गिर जायेंगे।
39क्योंकि तूने युद्ध के लिये मेरी कमर में शक्ति का पटुका बाँधा है; और मेरे विरोधियों को मेरे सम्मुख नीचा कर दिया।
40तूने मेरे शत्रुओं की पीठ मेरी ओर फेर दी; ताकि मैं उनको काट डालूँ जो मुझसे द्वेष रखते हैं।
41उन्होंने दुहाई तो दी परन्तु उन्हें कोई बचानेवाला न मिला, उन्होंने यहोवा की भी दुहाई दी, परन्तु उसने भी उनको उत्तर न दिया।
42तब मैंने उनको कूट-कूटकर पवन से उड़ाई हुई धूल के समान कर दिया; मैंने उनको मार्ग के कीचड़ के समान निकाल फेंका।
43तूने मुझे प्रजा के झगड़ों से भी छुड़ाया; तूने मुझे अन्यजातियों का प्रधान बनाया है; जिन लोगों को मैं जानता भी न था वे मेरी सेवा करते है।
44मेरा नाम सुनते ही वे मेरी आज्ञा का पालन करेंगे; परदेशी मेरे वश में हो जाएँगे।
45परदेशी मुर्झा जाएँगे, और अपने किलों में से थरथराते हुए निकलेंगे।
46यहोवा परमेश्‍वर जीवित है; मेरी चट्टान धन्य है; और मेरे मुक्तिदाता परमेश्‍वर की बड़ाई हो।
47धन्य है मेरा पलटा लेनेवाला परमेश्‍वर! जिसने देश-देश के लोगों को मेरे वश में कर दिया है;
48और मुझे मेरे शत्रुओं से छुड़ाया है; तू मुझ को मेरे विरोधियों से ऊँचा करता, और उपद्रवी पुरुष से बचाता है।

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