4बुद्धि से कह कि, “तू मेरी बहन है,” और समझ को अपनी कुटुम्बी बना;
5तब तू पराई स्त्री से बचेगा, जो चिकनी चुपड़ी बातें बोलती है।
6मैंने एक दिन अपने घर की खिड़की से, अर्थात् अपने झरोखे से झाँका,
7तब मैंने भोले लोगों* में से एक निर्बुद्धि जवान को देखा;
8वह उस स्त्री के घर के कोने के पास की सड़क से गुजर रहा था, और उसने उसके घर का मार्ग लिया।
9उस समय दिन ढल गया, और संध्याकाल आ गया था, वरन् रात का घोर अंधकार छा गया था।
10और उससे एक स्त्री मिली, जिसका भेष वेश्या के समान था, और वह बड़ी धूर्त थी।
11वह शान्ति रहित और चंचल थी, और उसके पैर घर में नहीं टिकते थे;
12कभी वह सड़क में, कभी चौक में पाई जाती थी, और एक-एक कोने पर वह बाट जोहती थी।