17उसके मार्ग आनन्ददायक हैं, और उसके सब मार्ग कुशल के हैं।
18जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं, उनके लिये वह जीवन का वृक्ष बनती है; और जो उसको पकड़े रहते हैं, वह धन्य हैं।
19यहोवा ने पृथ्वी की नींव बुद्धि ही से डाली; और स्वर्ग को समझ ही के द्वारा स्थिर किया।
20उसी के ज्ञान के द्वारा गहरे सागर फूट निकले, और आकाशमण्डल से ओस टपकती है।
21हे मेरे पुत्र, ये बातें तेरी दृष्टि की ओट न होने पाए; तू खरी बुद्धि और विवेक* की रक्षा कर,
22तब इनसे तुझे जीवन मिलेगा, और ये तेरे गले का हार बनेंगे।
23तब तू अपने मार्ग पर निडर चलेगा, और तेरे पाँव में ठेस न लगेगी।