23जब उसका पति सभा में देश के पुरनियों के संग बैठता है, तब उसका सम्मान होता है।
24वह सन के वस्त्र बनाकर बेचती है; और व्यापारी को कमरबन्द देती है।
25वह बल और प्रताप का पहरावा पहने रहती है, और आनेवाले काल के विषय पर हँसती है*।
26वह बुद्धि की बात बोलती है*, और उसके वचन कृपा की शिक्षा के अनुसार होते हैं।
27वह अपने घराने के चालचलन को ध्यान से देखती है, और अपनी रोटी बिना परिश्रम नहीं खाती।
28उसके पुत्र उठ उठकर उसको धन्य कहते हैं, उनका पति भी उठकर उसकी ऐसी प्रशंसा करता है:
29“बहुत सी स्त्रियों ने अच्छे-अच्छे काम तो किए हैं परन्तु तू उन सभी में श्रेष्ठ है।”