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सभोपदेशक 5:4-17 in Hindi

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सभोपदेशक 5:4-17 in पवित्र बाइबिल

4 जब तू परमेश्‍वर के लिये मन्नत माने, तब उसके पूरा करने में विलम्ब न करना; क्योंकि वह मूर्खों से प्रसन्‍न नहीं होता। जो मन्नत तूने मानी हो उसे पूरी करना।
5 मन्नत मानकर पूरी न करने से मन्नत का न मानना ही अच्छा है।
6 कोई वचन कहकर अपने को पाप में न फँसाना*, और न परमेश्‍वर के दूत के सामने कहना कि यह भूल से हुआ; परमेश्‍वर क्यों तेरा बोल सुनकर अप्रसन्न हो, और तेरे हाथ के कार्यों को नष्ट करे?
7 क्योंकि स्वप्नों की अधिकता से व्यर्थ बातों की बहुतायत होती है: परन्तु तू परमेश्‍वर का भय मानना।।
8 यदि तू किसी प्रान्त में निर्धनों पर अंधेर और न्याय और धर्म को बिगड़ता देखे, तो इससे चकित न होना; क्योंकि एक अधिकारी से बड़ा दूसरा रहता है जिसे इन बातों की सुधि रहती है, और उनसे भी और अधिक बड़े रहते हैं।
9 भूमि की उपज सब के लिये है, वरन् खेती से राजा का भी काम निकलता है।
10 जो रुपये से प्रीति रखता है वह रुपये से तृप्त न होगा; और न जो बहुत धन से प्रीति रखता है, लाभ से यह भी व्यर्थ है।
11 जब सम्पत्ति बढ़ती है, तो उसके खानेवाले भी बढ़ते हैं, तब उसके स्वामी को इसे छोड़ और क्या लाभ होता है कि उस सम्पत्ति को अपनी आँखों से देखे?
12 परिश्रम करनेवाला चाहे थोड़ा खाए, या बहुत, तो भी उसकी नींद सुखदाई होती है; परन्तु धनी के धन बढ़ने के कारण उसको नींद नहीं आती।
13 मैंने धरती पर* एक बड़ी बुरी बला देखी है; अर्थात् वह धन जिसे उसके मालिक ने अपनी ही हानि के लिये रखा हो,
14 और वह किसी बुरे काम में उड़ जाता है; और उसके घर में बेटा उत्‍पन्‍न होता है परन्तु उसके हाथ में कुछ नहीं रहता।
15 जैसा वह माँ के पेट से निकला वैसा ही लौट जाएगा; नंगा ही, जैसा आया था, और अपने परिश्रम के बदले कुछ भी न पाएगा जिसे वह अपने हाथ में ले जा सके। (1 तीमु. 6:7)
16 यह भी एक बड़ी बला है कि जैसा वह आया, ठीक वैसा ही वह जाएगा; उसे उस व्यर्थ परिश्रम से और क्या लाभ है?
17 केवल इसके कि उसने जीवन भर बेचैनी से भोजन किया, और बहुत ही दुःखित और रोगी रहा और क्रोध भी करता रहा?
सभोपदेशक 5 in पवित्र बाइबिल