8 उपदेशक कहता है, सब व्यर्थ ही व्यर्थ; सब कुछ व्यर्थ है।
9 उपदेशक जो बुद्धिमान था, वह प्रजा को ज्ञान भी सिखाता रहा, और ध्यान लगाकर और जाँच-परख करके बहुत से नीतिवचन क्रम से रखता था।
10 उपदेशक ने मनभावने शब्द खोजे और सिधाई से ये सच्ची बातें लिख दीं।
11 बुद्धिमानों के वचन पैनों के समान होते हैं, और सभाओं के प्रधानों के वचन गाड़ी हुई कीलों के समान हैं, क्योंकि एक ही चरवाहे की ओर से मिलते हैं।