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वाइज़ 1:6-18 in Urdu

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वाइज़ 1:6-18 in इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019

6 हवा दख्खिन की तरफ़ चली जाती है और चक्कर खाकर उत्तर की तरफ़ फिरती है; ये हमेशा चक्कर मारती है, और अपनी गश्त के मुताबिक़ दौरा करती है।
7 सब नदियाँ समन्दर में गिरती हैं, लेकिन समन्दर भर नहीं जाता; नदियाँ जहाँ से निकलती हैं उधर ही को फिर जाती हैं।
8 सब चीजें मान्दगी से भरी हैं, आदमी इसका बयान नहीं कर सकता। आँख देखने से आसूदा नहीं होती, और कान सुनने से नहीं भरता।
9 जो हुआ वही फिर होगा, और जो चीज़ बन चुकी है वही है जो बनाई जाएगी, और दुनिया में कोई चीज़ नई नहीं।
10 क्या कोई चीज़ ऐसी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि देखो ये तो नई है? वह तो साबिक़ में हम से पहले के ज़मानों में मौजूद थी।
11 अगलों की कोई यादगार नहीं, और आनेवालों की अपने बाद के लोगों के बीच कोई याद न होगी।
12 मैं वा'इज़ येरूशलेम में बनी — इस्राईल का बा'दशाह था।
13 और मैंने अपना दिल लगाया कि जो कुछ आसमान के नीचे किया जाता है, उस सब की तफ़्तीश — ओ — तहक़ीक़ करूँ। ख़ुदा ने बनी आदम को ये सख़्त दुख दिया है कि वह दुख़ दर्द में मुब्तिला रहें।
14 मैंने सब कामों पर जो दुनिया में किए जाते हैं नज़र की; और देखो, ये सब कुछ बेकार और हवा की चरान है।
15 वह जो टेढ़ा है सीधा नहीं हो सकता, और नाक़िस का शुमार नहीं हो सकता।
16 मैंने ये बात अपने दिल में कही, “देख, मैंने बड़ी तरक़्क़ी की बल्कि उन सभों से जो मुझ से पहले येरूशलेम में थे, ज़्यादा हिकमत हासिल की; हाँ, मेरा दिल हिकमत और दानिश में बड़ा कारदान हुआ।”
17 लेकिन जब मैंने हिकमत के जानने और हिमाक़त — ओ — जहालत के समझने पर दिल लगाया, तो मा'लूम किया कि ये भी हवा की चरान है।
18 क्यूँकि बहुत हिकमत में बहुत ग़म है, और 'इल्म में तरक़्क़ी दुख की ज़्यादती है।
वाइज़ 1 in इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019