1 फिर उसने अपने शागिर्दों से कहा, “ये नहीं हो सकता कि ठोकरें न लगें, लेकिन उस पर अफ़सोस है कि जिसकी वजह से लगें।
2 इन छोटों में से एक को ठोकर खिलाने की बनिस्बत, उस शख़्स के लिए ये बेहतर होता है कि चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता और वो समुन्दर में फेंका जाता।
3 ख़बरदार रहो! अगर तेरा भाई गुनाह करे तो उसे डांट दे, अगर वो तौबा करे तो उसे मु'आफ़ कर।
4 और वो एक दिन में सात दफ़ा'' तेरा गुनाह करे और सातों दफ़ा' तेरे पास फिर आकर कहे कि तौबा करता हूँ, तो उसे मु'आफ़ कर।“
5 इस पर रसूलों ने ख़ुदावन्द से कहा, “हमारे ईमान को बढ़ा।”
6 ख़ुदावन्द ने कहा, “अगर तुम में राई के दाने के बराबर भी ईमान होता और तुम इस तूत के दरख़्त से कहते, कि जड़ से उखड़ कर समुन्दर में जा लग, तो तुम्हारी मानता।”
7 “मगर तुम में ऐसा कौन है, जिसका नौकर हल जोतता या भेड़ें चराता हो, और जब वो खेत से आए तो उससे कहे, जल्द आकर खाना खाने बैठ!'
8 और ये न कहे, 'मेरा खाना तैयार कर, और जब तक मैं खाउँ — पियूँ कमर बाँध कर मेरी ख़िदमत कर; उसके बाद तू भी खा पी लेना'?
9 क्या वो इसलिए उस नौकर का एहसान मानेगा कि उसने उन बातों को जिनका हुक्म हुआ ता'मील की?
10 इसी तरह तुम भी जब उन सब बातों की, जिनका तुम को हुक्म हुआ ता'मील कर चुको, तो कहो, 'हम निकम्मे नौकर हैं जो हम पर करना फ़र्ज़ था वही किया है'।“
11 और अगर ऐसा कि येरूशलेम को जाते हुए वो सामरिया और गलील के बीच से होकर जा रहा था
12 और एक गाँव में दाख़िल होते वक़्त दस कौढ़ी उसको मिले।
13 उन्होंने दूर खड़े होकर बुलन्द आवाज़ से कहा, ऐ ईसा! ऐ ख़ुदावन्द! हम पर रहम कर।
14 उसने उन्हें देखकर कहा, “जाओ! अपने आपको काहिनों को दिखाओ!” और ऐसा हुआ कि वो जाते — जाते पाक साफ़ हो गए।
15 फिर उनमें से एक ये देखकर कि मैं शिफ़ा पा गया हूँ, बुलन्द आवाज़ से ख़ुदा की बड़ाई करता हुआ लौटा;
16 और मुँह के बल ईसा के पाँव पर गिरकर उसका शुक्र करने लगा; और वो सामरी था।
17 ईसा ने जवाब में कहा, “क्या दसों पाक साफ़ न हुए; फिर वो नौ कहाँ है?