32 मगर जब बो दिया गया तो उग कर सब तरकारियों से बड़ा हो जाता है और ऐसी बड़ी डालियाँ निकालता है कि हवा के परिन्दे उसके साए में बसेरा कर सकते हैं।”
33 और वो उनको इस क़िस्म की बहुत सी मिसालें दे दे कर उनकी समझ के मुताबिक़ कलाम सुनाता था।
34 और बे मिसाल उनसे कुछ न कहता था, लेकिन तन्हाई में अपने ख़ास शागिर्दों से सब बातों के मा'ने बयान करता था।
35 उसी दिन जब शाम हुई तो उसने उनसे कहा “आओ पार चलें।”
36 और वो भीड़ को छोड़ कर उसे जिस हाल में वो था, नाव पर साथ ले चले, और उसके साथ और नावें भी थीं।
37 तब बड़ी आँधी चली और लहरें नाव पर यहाँ तक आईं कि नाव पानी से भरी जाती थी।
38 और वो ख़ुद पीछे की तरफ़ गद्दी पर सो रहा था “पस उन्होंने उसे जगा कर कहा? ऐ उस्ताद क्या तुझे फ़िक्र नहीं कि हम हलाक हुए जाते हैं।”
39 उसने उठकर हवा को डाँटा और पानी से कहा “साकित हो या'नी थम जा!” पस हवा बन्द हो गई, और बड़ा अमन हो गया।
40 फिर उसने कहा “तुम क्यूँ डरते हो? अब तक ईमान नहीं रखते।”