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भजन संहिता 78:4-32 in Hindi

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भजन संहिता 78:4-32 in पवित्र बाइबिल

4 उन्हें हम उनकी सन्तान से गुप्त न रखेंगे, परन्तु होनहार पीढ़ी के लोगों से, यहोवा का गुणानुवाद और उसकी सामर्थ्य और आश्चर्यकर्मों का वर्णन करेंगे। (व्य. 4:9, यहो. 4:6-7, इफि. 6:4)
5 उसने तो याकूब में एक चितौनी ठहराई, और इस्राएल में एक व्यवस्था चलाई, जिसके विषय उसने हमारे पितरों को आज्ञा दी, कि तुम इन्हें अपने-अपने बाल-बच्चों को बताना;
6 कि आनेवाली पीढ़ी के लोग, अर्थात् जो बच्चे उत्‍पन्‍न होनेवाले हैं, वे इन्हें जानें; और अपने-अपने बाल-बच्चों से इनका बखान करने में उद्यत हों,
7 जिससे वे परमेश्‍वर का भरोसा रखें, परमेश्‍वर के बड़े कामों को भूल न जाएँ, परन्तु उसकी आज्ञाओं का पालन करते रहें;
8 और अपने पितरों के समान न हों, क्योंकि उस पीढ़ी के लोग तो हठीले और झगड़ालू थे, और उन्होंने अपना मन स्थिर न किया था, और न उनकी आत्मा परमेश्‍वर की ओर सच्ची रही। (2 राजा. 17:14-15)
9 एप्रैमियों ने तो शस्त्रधारी और धनुर्धारी होने पर भी, युद्ध के समय पीठ दिखा दी।
10 उन्होंने परमेश्‍वर की वाचा पूरी नहीं की, और उसकी व्यवस्था पर चलने से इन्कार किया।
11 उन्होंने उसके बड़े कामों को और जो आश्चर्यकर्म उसने उनके सामने किए थे, उनको भुला दिया।
12 उसने तो उनके बाप-दादों के सम्मुख मिस्र देश के सोअन के मैदान में अद्भुत कर्म किए थे।
13 उसने समुद्र को दो भाग करके उन्हें पार कर दिया, और जल को ढेर के समान खड़ा कर दिया।
14 उसने दिन को बादल के खम्भे से और रात भर अग्नि के प्रकाश के द्वारा उनकी अगुआई की।
15 वह जंगल में चट्टानें फाड़कर, उनको मानो गहरे जलाशयों से मनमाना पिलाता था। (निर्ग. 17:6, गिन. 20:11, 1 कुरि. 10:4)
16 उसने चट्टान से भी धाराएँ निकालीं और नदियों का सा जल बहाया।
17 तो भी वे फिर उसके विरुद्ध अधिक पाप करते गए, और निर्जल देश में परमप्रधान के विरुद्ध उठते रहे।
18 और अपनी चाह के अनुसार भोजन माँगकर मन ही मन परमेश्‍वर की परीक्षा की*।
19 वे परमेश्‍वर के विरुद्ध बोले, और कहने लगे, “क्या परमेश्‍वर जंगल में मेज लगा सकता है?
20 उसने चट्टान पर मारके जल बहा तो दिया, और धाराएँ उमण्ड चली, परन्तु क्या वह रोटी भी दे सकता है? क्या वह अपनी प्रजा के लिये माँस भी तैयार कर सकता?”
21 यहोवा सुनकर क्रोध से भर गया, तब याकूब के विरुद्ध उसकी आग भड़क उठी, और इस्राएल के विरुद्ध क्रोध भड़का;
22 इसलिए कि उन्होंने परमेश्‍वर पर विश्वास नहीं रखा था, न उसकी उद्धार करने की शक्ति पर भरोसा किया।
23 तो भी उसने आकाश को आज्ञा दी, और स्वर्ग के द्वारों को खोला;
24 और उनके लिये खाने को मन्ना बरसाया, और उन्हें स्वर्ग का अन्न दिया। (निर्ग. 16:4, यूह. 6:31)
25 मनुष्यों को स्वर्गदूतों की रोटी मिली; उसने उनको मनमाना भोजन दिया।
26 उसने आकाश में पुरवाई को चलाया, और अपनी शक्ति से दक्षिणी बहाई;
27 और उनके लिये माँस धूलि के समान बहुत बरसाया, और समुद्र के रेत के समान अनगिनत पक्षी भेजे;
28 और उनकी छावनी के बीच में, उनके निवासों के चारों ओर गिराए।
29 और वे खाकर अति तृप्त हुए, और उसने उनकी कामना पूरी की।
30 उनकी कामना बनी ही रही, उनका भोजन उनके मुँह ही में था,
31 कि परमेश्‍वर का क्रोध उन पर भड़का, और उसने उनके हष्टपुष्टों को घात किया, और इस्राएल के जवानों को गिरा दिया। (1 कुरि. 10:5)
32 इतने पर भी वे और अधिक पाप करते गए; और परमेश्‍वर के आश्चर्यकर्मों पर विश्वास न किया।
भजन संहिता 78 in पवित्र बाइबिल