14 उसने दिन को बादल के खम्भे से और रात भर अग्नि के प्रकाश के द्वारा उनकी अगुआई की।
15 वह जंगल में चट्टानें फाड़कर, उनको मानो गहरे जलाशयों से मनमाना पिलाता था। (निर्ग. 17:6, गिन. 20:11, 1 कुरि. 10:4)
16 उसने चट्टान से भी धाराएँ निकालीं और नदियों का सा जल बहाया।
17 तो भी वे फिर उसके विरुद्ध अधिक पाप करते गए, और निर्जल देश में परमप्रधान के विरुद्ध उठते रहे।
18 और अपनी चाह के अनुसार भोजन माँगकर मन ही मन परमेश्वर की परीक्षा की*।
19 वे परमेश्वर के विरुद्ध बोले, और कहने लगे, “क्या परमेश्वर जंगल में मेज लगा सकता है?
20 उसने चट्टान पर मारके जल बहा तो दिया, और धाराएँ उमण्ड चली, परन्तु क्या वह रोटी भी दे सकता है? क्या वह अपनी प्रजा के लिये माँस भी तैयार कर सकता?”