11 वह शान्ति रहित और चंचल थी, और उसके पैर घर में नहीं टिकते थे;
12 कभी वह सड़क में, कभी चौक में पाई जाती थी, और एक-एक कोने पर वह बाट जोहती थी।
13 तब उसने उस जवान को पकड़कर चूमा, और निर्लज्जता की चेष्टा करके उससे कहा,
14 “मैंने आज ही मेलबलि चढ़ाया* और अपनी मन्नतें पूरी की;